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बस्तर का काकतीय वंश | Kakatiya Dynasty of Bastar

 बस्तर का काकतीय वंश 

बस्तर का काकतीय वंश


छिन्दक नाग वंश के अंतिम शासक हरिशचंद्र देव को पराजित कर चालुक्य वंश के शासक अन्नमदेव ने 1324 ई  बस्तर में काकतीय वंश की स्थापना की और अपनी प्रांरभिक राजधानी  चक्रकोट से  मंधोता को बनाई। इस वंश के शासक पुरुषोत्तम देव ने चक्रकोट को अपनी राजधानी बनाया था। इस वंश के अंतिम शासक प्रवीरचंद भंजदेव थे। इस वंश की एकमात्र महिला शासिका प्रफुल्ल कुमारी देवी थी। 

  1. शासनकाल - 1324 -1961 ई 
  2. संस्थापक - अन्नमदेव 
  3. अंतिम शासक - प्रवीरचंद भंजदेव 
  4. महिला शासिका -  प्रफुल्ल कुमारी देवी 
  5. शासन क्षेत्र - बस्तर 

राजधानी :

  1. अन्नमदेव -  मंधोता 
  2. पुरुषोत्तम देव - चक्रकोट 
  3. दिगपालदेव - बस्तर 
  4. दलपत देव  - जगदलपुर 

दक्षिण बस्तर में स्वतंत्र रूप से शासन करने वाले काकतीय वंश के शासक 

1. अन्नम देव :1324 - 1369 ई. 

1324 ई में अंतिम छिन्दक नागवंशीय शासक हरिशचंद्र को पराजित किया और काकतीय वंश की स्थापना की। 

  1. राजधानी परिवर्तन - चक्रकोट से मंधोता 
  2. पत्नी - सोनकुंवर चन्देलिन(चंदेल वंश )
  3. निर्माण - दंतेश्वरी मंदिर(शंखनी-डंकनी के संगम पर 
  4. दंतेवाड़ा शिलालेख में अन्नमदेव को अन्नराज कहा गया है। 
  5. एक वर्ष बारसूर में रहकर दंतेवाड़ा में बसे। 
  6. हल्बी ,भतरी ,लोकगीतों में अन्नमदेव को चालांकी वंश का राजा कहा गया है। 

2. हमीर देव:1369 -1410  ई. 

3. भैरव देव :1410 -1468  ई.  

इनकी पत्नी मेघई/मेघावती आखेट विधा में निपूर्ण थी , जिसके स्मृति में  आज भी बस्तर में मेघी साड़ी प्रसिद्ध है। 

4. पुरषोत्तम देव:1468 -1534  ई.  

  1.  राजधानी परिवर्तन - मंधोता से बस्तर 
  2. यात्रा - जगन्नाथपुरी की 
  3. उपाधि -रथपति 

राजा पुरषोत्तम देव ने जननाथपुरी की यात्रा पेट के बल जमीन नापते हुए पुरी(उड़ीसा) पहुंचकर भगवान जगन्नाथ का दर्शन किया तथा रत्नभूषण आदि भेंट चढ़ाया। 

पुरी के राजा ने राजा पुरषोत्तम देव का स्वागत किया और उन्हें 16 पहियों वाला रथ प्रदान किया। 

राजा पुरषोत्तम देव ने  विश्व प्रसिद्ध गोंचा पर्व(रथयात्रा) की शुरुआत की थी। 

गोंचा पर्व के दौरान रथ खींचने का कार्य घुरवामरिया जनजाति के लोग करते है। 

5. जयसिंह देव:

राजा पुरषोत्तम देव देव के पुत्र थे। 

6. नरसिंह देव 

  1. पत्नी - रानी लक्ष्मीकुंवर 
  2. इनकी रानी ने अनेक तालाब व बगीचे बनवाये थे। 

7. प्रताप राजदेव:1602 -1625  ई.  

इनके शासन काल में गोलकुंडा के मुहम्मद कुली कुतुबशाह की सेना ने बस्तर पर आक्रमण किया था ,परन्तु बस्तर की सेना से कुतुबशाह की सेना को हार का सामना करना पड़ा। 

8. जगदीशराज देव:

9. वीरनारायण:

इनके शासन काल में गोलकुंडा के मुहम्मद कुली कुतुबशाह की सेना ने जैपुर के राजाओ और  बस्तर पर पुनः आक्रमण किया था, जिसमे कुतुबशाह की सेना फिर से असफलता प्राप्त हुई। 

10. वीरसिंह देव:1654 -1680  ई. 

  1. यह बड़ा उदार ,धार्मिक ,प्रजापालक था। 
  2. इन्होने राजपुर के दुर्ग का निर्माण करवाया। 

11. दिगपालदेव:1680 -1709  ई. 

  1. राजधानी परिवर्तन - चक्रकोट से बस्तर (1703 ई)

12. राजपाल देव:1709 -1721  ई. 

  1. उपाधि - पौढ़ प्रताप चक्रवाती 
  2. भक्त - मणिकेश्वरी देवी 

इनकी दो रानियां थी। पहली रानी बघेलिन के पुत्र दखिन सिंह और दूसरी रानी चन्देलिन रानी के पुत्र दलपत राव और प्रतापदेव थे। 

चंदेल मामा

राजपाल देव की मृत्यु के बाद चन्देलिन का भाई चंदेल मामा गद्दी पर बैठा ,परन्तु दलपत देव ने रक्षाबंधन के शुभ मुहर्तपर चंदेल मामा की हत्या कर दी। 

13.दलपतदेव;1731 -1774  ई.  

  1. राजधानी परिवर्तन - बस्तर से जगदलपुर(1770 ई) 
  2. आक्रमण - भोंसले वंश के सेनापति नीलू पंत ने बस्तर पर आक्रमण किया जो असफल रहा। 
  3. इनके शासनकाल में वस्तु-विनिमय प्रणाली की शुरुआत हुई। 
  4. इनके दो पुत्र अजमेर सिंह  और दरियाव देव थे। 

14. अजमेर सिंह:1774 -1777  ई. 

  1. इन्हे बस्तर के क्रांति का मसीहा के नाम से जाना जाता है। 
  2. अजमेरसिंह के नेतृत्व में बस्तर का प्रथम जनजाति विद्रोह हल्बा विद्रोह (1774 ई ) में शुरू हुआ था। 

दरियाव देव ने ब्रिटिश अधिकारी जॉनसन और मराठो की सहायता से अजमेर सिंह पर आक्रमण किया। जिसमे अजमेर सिंह मारा गया। 

इस विद्रोह के बाद  ही काकतीय वंश का शासन मराठो के अधीन आ गया। 

हल्बा विद्रोह में कई लोगो का नरसंहार हुआ था इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का नरसंहार नाम से भी जाना जाता है। 

मराठा के अधीन काकतीय शासक 

15. दरियाव देव:1777 - 1800  ई. 

  1. इसके शासन काल में जैपुर नरेश विक्रमदेव व भोसला शासक बिम्बाजी के बीच 6 अप्रैल 1778 को कोटपाड़ की संधि हुई। 
  2. इसके समय काकतीय वंश मराठो के अधीन आ गया। 
  3. 1795 ई भोपालपट्टनम विद्रोह मिस्टर ब्लंट के विरोध में किया गया। 
  4. मिस्टर ब्लंट ने कांकेर तक यात्रा किया परन्तु बस्तर में प्रवेश नहीं कर पाए। 

आंग्ल -मराठा अधीन काकतीय शासक 

16. महिपाल देव:1800 -1842 ई.

  1. कोटपाड़ संधि का उल्लघंन  किया। 
  2. इनके शासकाल में परलकोट विद्रोह(1825 ई ) हुआ था  जिसका नेतृत्व गेंद सिंह ने किया। 
  3. इसके दो पुत्र भूपाल देव और दलगंजन सिंह थे। 

17. भूपाल देव:1842 -1853 ई.

  1. इसके शासनकाल में दंतेश्वरी मंदिर में नरबलि प्रथा का प्रचलन था। अंगेजो ने जीएसकी जाँच करने के लिए मैक्फर्सन को नियुक्त किया था। 
  2. इसके शासनकाल में दो प्रसिद्द जनजाति विद्रोह हुए। 
  3. मेरिया विद्रोह(1842) - हिड़मा मांझी के नेतृत्व में। 
  4. तारापुर विद्रोह (1842) - दलगंजन सिंह के नेतृत्व में। 

ब्रिटशकालीन काकतीय वंश के शासक 

18. भैरमदेव:1853 -1891 ई.

  1. इसके शासनकाल में डिप्टी कमिशनर चार्ल्स इलियट का बस्तर में आगमन हुआ। 
  2. इसके शासनकाल में तीन प्रसिद्ध जनजाति विद्रोह हुए। 
  3. लिंगागिरी विद्रोह(1856) - धुरवाराम के नेतृत्व में। 
  4. कोई विद्रोह (1859) -नागुल दोरला के नेतृत्व में। 
  5. मुड़िया विद्रोह(1876) - झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में। 

रानी चोरिस का विद्रोह :  

  1. इसका मूलनाम जुगराज कुंवर था। 
  2. इन्होने भैरमदेव की खिलाफ विद्रोह किया। 
  3. छत्तीसगढ़ की प्रथम विद्रोहिणी है। 

19. रुद्रप्रताप देव :1891 -1921 ई.

  1. 1894 ई में राजकुमार कॉलेज का निर्माण 
  2. रुद्रप्रताप देव पुस्तकालय का निर्माण 
  3. उपाधि - सेंट ऑफ़ जेरुसलम 
  4. 1908 में जगलदलपुर का नियोजन करके चौराहो का नगर बनाया। 
  5. इनके शासकाल में बस्तर में प्रसिद्ध  भूमकाल विद्रोह हुआ। 
  6. इनके समय बस्तर में घैटापोनि प्रथा का प्रचलन था। 

20. प्रफुल्ल कुमारी देवी:1921 -1936 ई.

बस्तर व छत्तीसगढ़ की एकमात्र महिला शासिका 

इनकी मृत्यु लन्दन में हुई थी। 

21.प्रवीरचंद भंजदेव:1936-1961 ई. 

  1. अंतिम काकतीय वंश के शासक थे। 
  2. इन्ही के समय बस्तर का विलय छत्तीसगढ़(1948) में हुआ। 
  3. प्रसिद्ध गोलीकांड इन्ही से संबधित है।

प्रमुख जनजाति विद्रोह 

1. हल्बा विद्रोह(1774 -1777 ई )
  1. नेतृत्व - अजमेर सिंह 
  2. कारण - अजमेर सिंह और दरियाव देव के बीच उत्तराधिकारी का युद्ध हुआ। 
  3. परिणाम - दरियाव देव ने जयपुर के राजा विक्रमदेव व अग्रेज अधिकारी जॉनसन की मदद से अजमेर सिंह पर आक्रमण किया। जिसमे हल्बा जनजाति के लोगो ने अजमेर सिंह का साथ दिया। इस विद्रोह में अजमेर सिंह मारा गया जिसके बाद दरियाव देव ने कई लोगो का नरसंहार किया।  इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का नरसंहार के नाम से जाना जाता है। 
 2. परलकोट विद्रोह (1824 -1825 ई )
  1. शासक - महिपाल देव 
  2. नेतृत्व - गैंदसिंह(परलकोट का जमींदार)
  3. कारण - अबूझमाड़ियों को शोषण से बचाने के लिए। 
  4. प्रतीक - धावड़ा वृक्ष की टहनी 
  5. दमनकर्ता - अग्रेज अधिकारी पेबे के द्वारा। 
  6. परिणाम - गैंदसिंह को 20 जनवरी 1925 में फांसी दे दी गई। 
  7. गैंदसिंह को बस्तर का प्रथम शहीद कहा जाता है। 
3. तारापुर विद्रोह (1842 -1854 ई )
  1. शासक - भूपालदेव 
  2. नेतृत्व - दलगंजन सिंह (तारापुर क्षेत्र के परगना का प्रमुख)
  3. कारण - तारापुर  में कर बढ़ाने के विरोध में 
  4. परिणाम - अग्रेज अधिकारी विलियम्स के द्वारा कर वृद्धि के आदेश को वापस ले लिया गया। 
4. मेरिया विद्रोह(1842 -1863 ई )
  1. शासक - भूपालदेव 
  2. नेतृत्व - हिडमा मांझी 
  3. कारण - नरबलि प्रथा समाप्त करने के विरोध में। 
  4. जांचकर्ता - मैक्फर्सन 
  5. दमनकर्ता - कैम्पबेल 
  6. दंतेश्वरी मंदिर में नरबलि का प्रचलन था जिसमे दी जाने वाली बलि को मेरिया कहते है। 
5. लिंगागिरी विद्रोह (1856 ई )
  1. इसे बस्तर का मुक्ति सग्राम कहा जाता है। 
  2. शासक - भैरमदेव 
  3. नेतृत्व - धुरवा राम माड़िया
  4. कारण - बस्तर को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल करने के कारण। 
  5. परिणाम - धुरवा राम माड़िया को फांसी दे दी गई। 
  6. धुरवा राम माड़िया को बस्तर का दूसरा शहीद कहा जाता है। 
6. कोई विद्रोह (1859 ई )
  1. शासक - भैरमदेव 
  2. नेतृत्व - नागल दोरला 
  3. कारण - साल वृक्ष की अवैध कटाई को रोकने के लिए 
  4. नारा - एक साल वृक्ष के पीछे एक व्यक्ति एक सिर
  5. कोई विद्रोह बस्तर का पहला सफल विद्रोह था। 
  6. यह विद्रोह चिपको विद्रोह  के समान माना जाता है। 
7.मुड़िया विद्रोह (1878)
  1. शासक - भैरमदेव 
  2. नेतृत्व - झाड़ा सिरहा 
  3. कारण - आटोक्रेसी नीति के विरोध एवं गोपीनाथ को दीवान बनाने के विरोध में 
  4. प्रतीक - आम वृक्ष की टहनी 
  5. दमनकर्ता - मैक जार्ज 
  6. परिणाम - 2 मार्च 1876 को बस्तर का कला दिवस मनाया गया। 
8.भूमकाल विद्रोह(1910 ई )
  1. शासक - रुद्रप्रतापदेव 
  2. नेतृत्व - गुण्डाधुर ,कालिंदर सिंह 
  3. कारण - स्थानीय जनता की उपेक्षा ,वनो के उपयोग एवं शराब बनाने पर प्रतिबन्ध का विरोध। 
  4. प्रतीक - लाल मिर्च एवं आम की टहनी 
  5. दमनकर्ता - कप्तान गेयर

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