छत्तीसगढ़ में वन प्रशासन एवं प्रमुख संस्थान
प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़ वन संपदा का एक समृद्ध राज्य रहा है। इन घने जंगलों में, हमारे पर्यावरण के साथ, जनजाति संस्कृति और वन उपज से राजस्व आय अर्जित करने और उद्योग के लिए कच्चा माल प्रदान करने के लिए एक विशेष आधार प्रदान करता है। यह राज्य के वन प्राणियों और जैव विविधता के लिए एक वरदान है।
आमतौर पर हमारे राज्य के कर्क रेखा में स्थित होने के कारण, उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन यहाँ पाए जाते हैं और जैव-भौगोलिक दृष्टिकोण से, हमारा क्षेत्र दक्कन जैव-क्षेत्र में शामिल है।
छत्तीसगढ़ राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,191 वर्ग किलोमीटर है, जो कि देश के क्षेत्रफल का 4.1 प्रतिशत है। प्रदेश का वन क्षेत्रफल लगभग 59,772 वर्ग किलोमीटर है, जो कि प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 44.21 प्रतिशत है। राज्य के वन आवरण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का देश में तीसरा स्थान है ।
सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्य
- मध्य प्रदेश - 77,482 वर्ग किमी.
- अरुणाचल प्रदेश -66,688 वर्ग किमी.
- छत्तीसगढ़ - 55,611 वर्ग किमी.
- ओडिशा - 51,619 वर्ग किमी.
- महाराष्ट्- 50,778 वर्ग किमी
सर्वाधिक वनावरण प्रतिशत वाले राज्य
- मिज़ोरम - 85.41%
- अरुणाचल प्रदेश - 79.63%
- मेघालय - 76.33%
- मणिपुर - 75.46%
- नगालैंड - 75.31%
वन क्षेत्रफल में वृद्धि वाले शीर्ष राज्य
- कर्नाटक - 1,025 वर्ग किमी.
- आंध्र प्रदेश - 990 वर्ग किमी.
- केरल - 823 वर्ग किमी.
- जम्मू-कश्मीर - 371 वर्ग किमी.
- हिमाचल प्रदेश - 334 वर्ग किमी.
छत्तीसगढ़ राज्य का विस्तार 17° 46' डिग्री से 24°06' डिग्री उत्तर अक्षांश तथा 80°15' डिग्री से 84°51' डिग्री पूर्वी देशांतर के मध्य है। राज्य में 4 प्रमुख नदी प्रणालियों क्रमशः महानदी, गोदावरी, नर्मदा और वैनगंगा का जलग्रहण क्षेत्र शामिल है।
महानदी, इंद्रावती, हसदेव, शिवनाथ, अरपा, ईब राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं। राज्य की जलवायु मुखयतः सह आर्द्र तथा औसत वार्षिक वर्षा 1200 से 1500 मि.मी. है।
राज्य के वनों को दो प्रमुख वर्गो में विभाजित किया गया है, उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपातीय वन एवं उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपातीय वन।
राज्य की दो प्रमुख वृक्ष प्रजातियां साल (Shorea robusta) तथा सागौन (Tectona grandis) हैं। इसके अतिरिक्त शीर्ष वितान में बीजा (Pterocarpus marsupium), साजा (Terminalia tomentosa), धावड़ा (Anogeissus latifolia), महुआ (Madhuca indica), तेन्दू (Diospyros melanoxylon) प्रजातियाँ हैं।
मध्य वितान में आंवला (Embilica officinalis), कर्रा (Cleistanthus collius) तथा बांस (Dendrocalamus strictus) आदि महत्वपूर्ण प्रजातियॉ हैं। भूतल भाग में नाना प्रकार की वनस्पतियाँ हैं जो पर्यावरणीय संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण तो हैं ही, साथ ही वे वन-वासियों के आजीविका का प्रमुख साधन भी हैं।
जैव भौगोलिक दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ राज्य दक्कन जैव क्षेत्र में शामिल हैं, तथा मध्य भारत की प्रतिनिधि वन्य प्राणी जैसे बाघ (Panthera tigris), तेन्दुआ (Panthera pardus), गौर (Bos gaurus), सांभर (Cervus unicolor), चीतल (Axis axis), नील गाय (Boselaphus tragocamelus) एवं जंगली सुअर (Sus Scofa) से परिपूर्ण है। दुर्लभ वन्य प्राणी जैसे वन भैंसा (Bubalus bubalis) तथा पहाड़ी मैना (Gracula religiosa) इस राज्य की बहुमूल्य धरोहर हैं जिन्हें क्रमशः राज्य पशु एवं राज्य पक्षी घोषित किया गया है। साल वृक्ष को राज्य वृक्ष घोषित किया गया है।
यह राज्य, कोयला, लोहा, बॉक्साईट, चूना, कोरंडम, हीरा, स्वर्ण, टीन इत्यादि खनिज संसाधनों से परिपूर्ण है, जो मुखयतः वन क्षेत्रो में ही पाये जाते हैं। राज्य के लगभग 50 प्रतिशत गांव वनों की सीमा से 5 किलोमीटर की परिधि के अंदर आते हैं, जहां के निवासी मुख्यतः आदिवासी हैं एवं आर्थिक रुप से पिछड़े हैं जो जीविकोपार्जन हेतु मुख्यतः वनों पर निर्भर हैं।
इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में गैर आदिवासी, भूमिहीन एंव आर्थिक दृष्टि से पिछड़े समुदाय भी वनों पर आश्रित हैं। वानिकी कार्यों से प्रतिवर्ष लगभग 07 करोड़ मानव दिवस रोजगार का सृजन होता है।
वनों से ग्रामीणों को लगभग 2000 करोड़ रुपये का लघु वनोपज एवं अन्य निस्तार सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के संवहनीय एवं सर्वागीण विकास परिदृश्य में वनों का विशिष्ट स्थान है।
छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम :
छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम का गठन मई 2001 को किया गया था , जिसका मुख्यालय रायपुर में स्थित है।
छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम का उद्देश्य :
1. प्राकृतिक वन संसाधनों का सरक्षण ,विकास एवं सतत प्रबंधन करना है।
2. वानिकी गतिविधियों में रोजगार सृजन से वनो के सीमावर्ती आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में ग्रामीणों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार एवं उनके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध करना है।
3. औधोगिक एवं व्यापारिक दृष्टि से उपयुक्त वनक्षेत्रों का प्रबंधन एवं बढ़ने वाली मूल्यवान प्रजतियो का रोपण करना।
4. पर्यावरण को सुधारने के लिए खदानी एवं औधोगिक क्षेत्रों में मिश्रित प्रजातियों के रोपण पर बल देना ।
छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम 04 परियोजना मंडल के साथ अस्तित्व में आया था परन्तु वर्तमान में 9 वन परियोजना मंडल है। वर्तमान में वन विकास निगम प्रबंध संचालक श्री आर. के. गोवर्धन पदस्थ है।
1. बारनवापारा-रायपुर वन परियोजना मंडल
2. पानाबरस -राजनांदगावं वन परियोजना मंडल
3. कवर्धा-कबीरधाम वन परियोजना मंडल
4. सरगुजा-अंबिकापुर वन परियोजना मंडल
5. कोटा-बिलासपुर वन परियोजना मंडल
6. अंतागढ़ -भानुप्रतापपुर वन परियोजना मंडल
7. औधोगिक वन परियोजना मंडल(कोरबा)
8. औधोगिक वन परियोजना मंडल(जगदलपुर)
9. औधोगिक वन परियोजना मंडल(रायगढ़)
छत्तीसगढ़ हर्बल स्टेट :
हर्बल स्टेट का दर्जा छत्तीसगढ़ को 4 जुलाई 2001 में मिला जिसका उद्देश्य जैव विविधता एवं वनऔषधियो के भंडार को संरक्षित एवं सवर्धित करना है । छत्तीसगढ़ राज्य के 09 वनमंडलो में हर्बल गार्डन की स्थापना की गयी है।
छत्तीसगढ़ राज्य औषधीय पादप बोर्ड :
औषधीय पादप बोर्ड का गठन 4 जुलाई 2004 को किया गया था जिसका उद्देश्य औषधीय पादपों का संरक्षण,संवर्धन ,प्रसंस्करण ,निर्माण एवं विपणन से संबधित नीति बनाने एवं विभिन्न संस्थाओ के बीच समन्वय बनाना है ।
वर्तमान औषधीय पादप बोर्ड के सीईओ श्री जे.ए.सी.एस. राव है।
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित
इसका गठन 2000 में मध्यप्रदेश से विभाजन के बाद मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज संघ हुआ। इसका उद्देश्य लघु वनोपजों के विपणन,अनुसन्धान एवं विकास को बढ़ावा देना है।
वर्तमान में लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित के प्रबंध संचालक श्री संजय शुक्ला है ।
छत्तीसगढ़ वनोपज :-
छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार के वन संसाधन प्राप्त होते है। जिसे मुख्य वनोपज और गौण वनोपज में बांटा गया है। मुख्य वनोपज में लकड़ी के उत्पाद और जलाऊ लकड़ी को रखा गया है। जिसमे से राष्ट्रीकृत प्रजातियां छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। इन्हे इमारती लकड़ी भी कहा जाता है।
देश में 13 मुख्य प्रजातियों को इमारती लकड़ी घोषित किया गया है ,जिसमे से 6 राष्ट्रीकृत प्रजातियां छत्तीसगढ़ में पाई जाती है।
राष्ट्रीकृत प्रजातियां(छत्तीसगढ़ की मुख्य वनोपज)
1. साल या सरई 2. शीशम 3. साजा 4. खैर 5. बीजा 6. सागौन
लघु व गौण वनोपज :
1. बांस 2. तेंदूपत्ता 3. इमली 4. आंवला 5. हर्रा 6 .बहेड़ा 7. लाख 8. पलाश 9. बैर 10. कुसुम
- लघु वनोपज (एमएफपी) का अर्थात एैसे उपज हैं जो विभिन्न वन प्रजातियों से फल, बीज, पत्ते, छाल, जड़, फूल और घास आदि के रूप में पाये जाते हैं तथा जिसमें औषधीय जड़ी बूटियॉं/झाड़ियों के पूरे भाग सम्मिलित हैं।
- छत्तीसगढ़ के वन इन लघु वनोपज से बहुत समृद्ध हैं। राज्य में कई लघु वनोपज प्रजातियां वाणिज्यिक महत्व की हैं।
- लघु वनोपज के क्रय मूल्य का निर्धारण हेतु अपेक्स समिति का गठन कलेक्टर की अध्यक्षता में किया जाता है ,जबकि सग्रहण वन विभाग के नियंत्रण में प्राथमिक लघु वनोपज समितियों एवं वन समितियों वन समितियों द्वारा किया जाता है।
1.बांस(Bamboo forest) :
- इसका विस्तार छत्तीसगढ़ में 11 % हिस्सों में है लगभग 6556 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बांस का विस्तार है। छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक नर बांस का विस्तार है
- सरगुजा संभाग में कटंग बांस पाये जाते है जबकि नारायणपुर नर बांस के लिए विख्यात है।
- छत्तीसगढ़ के राजस्व में बांस का 12 % हिस्सा है । जबकि लघु वनोपज में बांस का राजस्व 20 % है।
2. तेंदूपत्ता (Tendu leaf)
- तेंदूपत्ता एक राष्ट्रीकृत वनोत्पात है,जिसे समर्थन मूल्य में सग्रहण किया जाता है।
- देश के कुल तेंदूपत्ता का 17 % छत्तीसगढ़ में उत्पादित होता है।
- छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता में अग्रणी सरगुजा व बस्तर संभाग है।
3. खैर(Khair)
- खैर छत्तीसगढ़ का लघु वनोपज है।
- खैर के वृक्ष से कत्था निकाला जाता है, सरगुजा के खैरवार जनजाति द्वारा कत्था निकालने का कार्य किया जाता है।
- कत्था निकालने हेतु अंबिकापुर में सरगुजा वुड प्रोडक्ट है।
4. लाख
- लाख उत्पादन में छत्तीसगढ़ का पुरे देश में दूसरे स्थान ( झारखण्ड प्रथम ) है।
- पलास ,बैर और कुसुम के पौधे से लाख प्राप्त किया जाता है।
लघु वनोपज सहकारी संघ :
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित, रायपुर एक त्रिस्तरीय सहकारी संगठन है जिसके निर्माण का मुख्य उद्देश्य लघु वनोपज के संग्रहणकर्ताओं के हित में, सहकारिता के तर्ज पर लघु वनोपज के व्यापार और विकास में वृद्धि करना है। संघ के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-
- निम्नलिखित विनिर्दिष्ट लघु वनोपज का संग्रहण और व्यापार
- तेन्दू पत्ता (Diospyrous melanoxylon roxburghii )
- कुल्लू (Sterculia urens), धावड़ा (Anogeissus latifolia), खैर (Acacia catechu) और बबूल (Acacia nilotica) के गोंद।
- तेन्दू पत्ता संग्रहणकर्ताओं के लिए कई सामाजिक-आर्थिक कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन जैसे मुफ्त चप्पल वितरण, उनके बच्चों की शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति योजना, तेन्दू पत्ता संग्राहक सदस्यों के लिए बीमा योजनाएं, तेन्दू पत्ते के व्यापार से होने वाले लाभ का विभिन्न मजदूरी के रुप मे वितरण आदि।
- लघु वनोपज (एमएफपी) संग्रहणकर्ताओं को उनके संग्रहित उपज के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करना के लिए भारत सरकार ने Mechanism for Marketing of Minor Forest Produce (MFP) through Minimum Support Price (MSP) and Development of Value Chain for MFP" योजना की शुरुआत की है।
- इस योजना के तहत महत्वपूर्ण लघु वनोपज के लिए न्यून्तम समर्थन मूल्य तय की गई है। छत्तीसगढ़ में साल बीज (Shorea robusta), हर्रा (Terminalia bellerica), इमली (Tamarindus indica), चिरौंजी गुठली (Buchanania lanzan), लाख (कुसुमी, रंगीनी) (Karria lacca), और महुआ बीज (Madhuca latifolia) जैसे वनोपज की इस योजना के तहत क्रय किया जाना है।
- अन्य गैर विनिर्दिष्ट लघु वनोपज के संग्रहण और व्यापार को भी बाजार आश्वासन देते हुए जोड़ा गया है जैसे औषधीय और सुगंधित पौधे।
- लघु वन उपज आधारित प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा।
- लघु वन उपज के संरक्षण, विकास और सतत् उपयोग को बढावा ।
- औषधीय, सुगंधित और रंग देने वाले (डाई) पौधों सहित छोटे वनोपज की प्रजातियों की खेती को बढ़ावा।
- यह संघ राष्ट्रीयकृत और अन्तराष्ट्रीयकृत वनोत्पादो को न्यूनतम समर्थन मूल्य में क्रय करता है
वनो का प्रबंधन (Management of forests)
- छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण - रायपुर
- छत्तीसगढ़ जैव विविधता बोर्ड - रायपुर
- वन अनुसन्धान केंद्र - 1. बिलासपुर 2. रायपुर 3. जगदलपुर
- वन विधालय - 1. अंबिकापुर 2. कवर्धा 3. भानुप्रतापपुर
- इमली मंडी - जगदलपुर (बस्तर )
- काजू एवं कोसा अनुसन्धान केंद्र - जगदलपुर (बस्तर )
- राजीव स्मृति वन - 1. रायपुर 2. बिलासपुर
- बांस एम्पोरियम - रायपुर
- वनपाल प्रशिक्षण संस्थान - जगदलपुर
- वन रक्षक प्रशिक्षण संस्थान - 1. महासमुंद 2. सक्ति 3. जगदलपुर
- शहद प्रसंस्करण केंद्र - 1. बिलासपुर 2. कवर्धा 3. भानुप्रतापपुर
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